Sunday 23 September 2012

दीर्घ विश्राम के बाद फिर हाज़िर हूँ मित्रो


इस देष के लोगों और मीडिया को लगता है दूसरा कोई काम नहीं बचा है जरा सी बात हुई नही ंकि सारी दुनिया सर पर उठा लेते हैं सरकार ने रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के भाव क्या बढा दिये सारे देष में जेैसे भूचाल सा आ गया. उधर ममता दीदी नाराज हो गई इधर भाजपा ने हमेषा की तरह तत्काल से पेष्तर अपने मनमोहन सिंह से स्तीफा मंाग लिया दूसरे दल प्रदर्षन करने में जुट गये अखबारों में तमाम ‘‘लुगाईयों’’ की फोटो छपने लगी कि इस मंहगाई के बढने से उनका सारा बजट बिगड जायेगा. अब वे कैसे रोटीे बनाकर अपने ‘मरद’ और बाल बच्चों को खिलायेंगी ? अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि दुनिया में ऐसी कौन सी चीज है जो बढती नहीं है ? बच्चा पैदा होता धीरे धीरे बढता है और देखते ही देखते जवान हो जाता है पेड पौधे आदमी लगाता है वे भी पानी और धूप पाकर बढने लगते हैं और फिर पेड का रूप धारण कर लेते हैं नौकरी जब इंसान ज्वाईन करता है तो तनखा कितनी कम होती है फिर धीरे धीरे उसमें ‘‘इंन्क्रीमेन्ट’’ लगते हैं मंहगाई भत्ता बढता है हाउस रेन्ट बढ कर मिलने लगता है और तनखा में बढोतरी होती जाती है यही हाल पोस्ट का होता है जो पहले ‘क्लर्क’ के रूप में भरती होता है वो कुछ ही सालों में ‘अफसर’ हो जाता है. जब देष में भ्रटाचार बढ रह है, आबादी बढ रही है, गंुडे लुच्चे बढ रहे हैं, नेता बढ रहे हैं अपराधी बढ रहे है, गरीबी और अमीरी देानों बढ रही ह.ै जब सारी की सारी चीजें बढती जा रही है तो यदि मंहगाई भी बढ गई तो इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की जरूरत भला क्या है? जनता तो चाहती है कि मंहगाई भर का ‘‘विकास’’ न हो, वह अविकसित होकर रह जाये,उस पर भर जवानी न आये तो ऐसा तो होना संभव नहीं है उसको भी हक है सबसे साथ बढने का. आखिर है तो वो भी इसी देष की सदस्य. जब हर कोई जवान हो रहा है पर मंहगाई बेचारी बच्ची बनी रहे ये तो गलत बात है न जब सरकार हजारों रूपये तनखा बढा देती है चौथा पांचवा, छटवा, सातवा पता नही कौन कौन सा आयोग बैठाकर तनखा में बढोतरी कर देता है तब कोई ‘‘चूं’’ भी नहीं करता कि हे सरकार क्यों हमारी तनखा बढा रही हो हम तो काम धेले का नही करते सचमुच यदि काम के हिसाब से तनखा मिलने लगी तो नगर निगम हो या कलेक्ट्रेट या और कोई दूसरा सरकारी दफतर वहां के हर कर्मचारी को उल्टा सरकार के पास हर महीने पैसे जमा करने पडेंग.ें अरे भाई मंहगाई बढ रही है तो वेतन भी तो बढ रहा है और फिर जितने लोग हाय तौबा मचा रहे है उनसे पूछो कि हुजूर जब पैट्रोल दस रूपैया लीटर था आप तब भी उतनी गाडी चलाते थे और आज पचास रूपया है तो भी उसको उतना ही रगड रहे हो. गैस के दाम बढने से हलाकान हो रही गृहणियाों से भी कोई पूछे कि माताओ बहनों गैस के दाम बढने के बाद क्या कभी आपने ‘‘चूल्ह’े’’ में, ‘‘कोयले की या बरूदे की सिगडी’’ में रोटी बनाने की कोषिष करी है अपने को भी मालूम है कि इसका उत्तर ना ही हेगा ये ते ‘‘चोचले बाजी’’ है पहले भी ऐसी ‘‘नौटंकिया’’ होती आई हैं पर सरकार भी कोई कम उस्ताद तो है नही. अभी गैस में पैतीस रूपया बढे है ज्यादा हल्ला मचने के बाद उसमें पांच रूपये की कटौती कर देगी हल्ला मचाने वाली भी शांत हो जायेंगे और सरकार का तीस रूपये बढाने का उदेदष्य भी पूरा हो जायेगा. वैसे सी आजकल बीस पच्चीस पैतीस रूपये की औकात ही क्या है जहां हर नेता और अफसर के पास करोडो की संम्पति हो वहां इस तरह की छोटी मोटी बढोतरी से उनकी सेहत पर कोई फर्क नही पडता हां फर्क पडता है गरीब की पीठ पर लेकिन उस गरीब की चिन्ता किस को है यदि आप गरीब हो तो उसमें अमीर या सरकार क्या करे? अपने करमों का फल भोगो. अपनी तो मंहगाई को एक ही सलाह है कि तुम तो जी भर के बढो जिसको सामान लेना होगा लेगा जिसे नही लेना होगा नहीं लेगा. इनके चक्कर में तुम अपने विकास पर ‘‘ब्रेक’’ मत लगाना क्योंकि यदि एक बार इन मीडियावालों की ‘‘चिल्लपों’’ से डर जाओगी ते ये लोग जब चाहे तुम्हे दम देते रहेंगे तुम तो शान से बढो हर कोई आगे बढने की कोषिष में अपनी पूरी जिन्दगी लगा देता है और वो ही तुम करो समझ गईं न?

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